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Writer's pictureMeetu Doshi

21वीं सदी में युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता


मानव जाति की विविध संस्कृतिओं और दर्शन विधाओं को प्रभावित करने वाला एकल कारक विचार है I निर्माण, विध्वंस और युद्ध से लेकर शांति तक हर कविता, हर ग्रन्थ, स्थापत्य और सामाजिक परिवर्तन के मूल में विचार ही है I प्रांसगिकता का अर्थ है पूर्व में घटी घटना या, किसी ऐसे विचार को आज से जोड़कर, एक सन्दर्भ बिंदु के रूप में समाज और देशहित के लिए प्रयुक्त करना I

नरेंद्र दत्त अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के धनी, असाधारण स्मरण शक्ति के व्यक्ति थे, जो सन्यास के बाद स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्द हुए और रामकृष्ण मिशन के आधार स्तम्भ बने I धर्म दर्शन ज्ञान विज्ञान की सभी विधाओं में निष्णात स्वामी जी के युवा संन्यासी के रूप में "भाइयों और बहनों" के उनके संबोधन ने शिकागो धर्म संसद में उन्हें प्रसिद्धि और भारत के दर्शन को विश्व व्यापी पहचान दी I स्वामी जी के विचारों का अनुठापन यह है कि ये विचार एक मूर्तिभंजक, परमज्ञानी मस्तिष्क की उपज है I

स्वामी जी 'मनी मेकिंग शिक्षा' के बजाए 'मैन मेकिंग शिक्षा' के पक्षधर थे I वर्तमान समय में देश और विश्व में जब अपराध बढ़ रहे हैं, युवा बेरोजगारी के तनाव और नशे की ओर प्रवृत्ति हो रहे हैं, यह एक अत्यंत प्रभावी,कालजई और अत्यंत प्रासंगिक विचार है जो शिक्षा को नैतिक, उत्तरदाई नागरिक बनाने के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है I

वास्तव में स्वामी जी का व्यक्तित्व ही प्रेरणा का स्रोत है I उन्नत ललाट, स्वस्थ और पुष्ट शरीर गर्म वस्त्र में हाथ बंधे स्वामी जी के सर पर पगड़ी मानव स्वामी जी के बुद्धि के पार को निमंत्रण देने जान पड़ते हैं, उनका व्यक्तित्व एक सार्थक संदेश है, आह्वान है, चुनौती हैं I स्वामी जी का व्यक्तित्व बिना शब्दों के प्रेरणा का स्रोत है I यह बिना कारण नहीं है कि उनके चित्र बड़े-बड़े नेता और अधिकारी अपने दफ्तर की दीवार पर लगाते हैं I

विश्व में आज घोर निराशा का वातावरण है I सामाजिक असमानता, विकास की विसंगतियां और संघर्ष से उपजी भविष्य के प्रति सशंकितसोच इस समय की पहचान बन गई है I ऐसे में स्वामी जी का विचार ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं I वह हम ही हैं जो अपनी आंख पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है I

उठो मेरे शेरों इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तत्व नहीं हो, नहीं शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हो I

उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए" यह एक ऐसा विचार है जो मानवता के हर श्रेणी और वर्ग के लिए आज भी प्रासंगिक है I

स्वामी जी का विचार था कि किसी की निंदा न करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाइए। अगर नहीं बढ़ा सकते हैं, तो अपने हाथ जोड़कर, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिये।" मानव जाति में समन्वय और परस्पर सहयोग को प्रतिपादित करने वाला एक अत्यंत प्रासंगिक विचार है I स्वामी जी का विचार था. " सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।" आज के समय में जब धार्मिक उन्माद बढ़ रहा है, समाज में धार्मिक उन्माद के कारण संघर्ष बढ़ रहे हैं, स्वामी जी का यह विचार अपने कालजयी रूप में अत्यंत प्रासंगिक है, जो व्यक्ति में सही मार्ग प्रशस्त करता हुआ उत्साह का संचार करता है I

स्वामी जी का कथन 'आध्यात्म -विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा' समय की कसौटी पर सत्य उतरा है I आज जबकि दुनिया में अशांति और युद्ध का वातावरण है, दूसरी तरफ भारतीय दर्शन के मूल स्तम्भ वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया की सोच की व्यहारिकता को सिद्ध करता है, और यह इतना प्रासंगिक है कि अपने इस दर्शन के कारण विश्व समुदाय भारत कि तरफ आशा से देख रहा है I

'स्वामी विवेकानंद के अनुसार 'ईश्ववर' निराकार है"। धार्मिक प्रतीकों और भेदभाव में उलझे मानवता के लिए इससे पप्रासंगिक सन्देश नहीं हो सकता I स्वामी जी का विचार था निर्भय बनो , आत्मविश्वासी बनो और अपने शब्दों पर विश्वास करो I" आज हर नागरिक समाज देश और विश्व में समग्र रूप से साहस भरने का प्रासींगिक विचार है I स्वामी जी का एक विचार कि' परहित के कामों से हृदय शुद्ध होता है," आज के उस देश और समाज में जो पाश्वचात्य संस्कृति से प्रभावित होकर स्वकेन्द्रित हो रहा है, अत्यंत प्रासंगिक है क्योंकि इसमें मानवता का वह सन्देश छिपा है जिससे समाज में एकता विकसित होगी I स्वामी जी का मानना था कि जीवन को केवल सफल ही नहीं, अपितु उसे सार्थक बनाने की चेष्टा करनी चाहिए। यह सन्देश आज उस प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत प्रासंगिक है सफलता का अर्थ निज प्रगति को मानता है I स्वामी जी का विचार था " अगर धन दुसरो की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा बुराई का एक ढेर है,और इससे जितनी जल्दी छुटकारा मिल जाए, उतना बेहतर है" I अपरिग्रह के विचार के समानन्तर यह विचार उस समाज के लिए प्रासंगिक है, जो धन संग्रह में लीन है I कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। और कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि 'तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं, स्वामी जी के ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं I जो निराशा के क्षणों में ऊर्जा का संचार करते हैं । “ जिस समय जिस काम के किये प्रतिज्ञा करो, ठीक उस समय पर उसे करना ही चाहिए , स्वामी जी का यह विचार वास्तव मे दैनिक रूप से एक व्यक्ति और सामूहिक रूप से समाज और देश को प्रेरित करने वाला एक विचार है, जो काम को टालते रहने वाले समाज और व्यक्ति के लिए कालजय रूप से प्रासंगिक है I “ जिस समय जिस काम के किये प्रतिज्ञा करो, ठीक उस समय पर उसे करना ही चाहिए , स्वामी जी का यह विचार वास्तव मे दैनिक रूप से एक व्यक्ति और सामूहिक रूप से समाज और देश को प्रेरित करने वाला एक विचार है, जो काम को टालते रहने वाले समाज और व्यक्ति के लिए कालजय रूप से प्रासंगिक है I एक ऐसा विचार है जो सदियों तक प्रासंगिक रहेगी जिसमे आत्मविश्वास के प्रति जागरूक रहने का महत्व समझाया गया है I अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छोटे और आसान रास्तों की खोज करना मानव स्वभाव है, ऐसे में स्वामी जी का यह विचार "संघर्ष से मिली जीत सबसे शानदार होती है" I यह अत्यंत प्रासंगिक और मूल्यवान है हर उस व्यक्ति को, जो महत्वकांक्षी तो है लेकिन संघर्ष से बचना उसकी प्रविर्ती है. "काम को तन्मयता से करो" का स्वामी जी का विचार वास्तव में एक मार्गदर्शी सिद्धांत है जो व्यक्ति को केंद्रित रहने और सतत काम में डूबने रहने को प्रेरित करता है I यह इसलिए भी प्रासंगिक है कि यह विचार अनादि काल तक एक प्रभाव मंत्र के समान है I

स्वामी विवेकानंद का एक विचार ही पूरी मानवता के कल्याणमय होने, ऊजाशमय होने और सफलता के लक्ष्य को भेदने के संकल्प को स्थापित करने में सदा प्रासंगिक है, "जागो, उठो, लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको" I एक युवा, विलक्षण प्रतिभा के धनी, सारे धर्मग्रंथो और दर्शन शास्त्र के ज्ञाता, ओजस्वी वक्ता स्वामी विवेकानंद का यह एक विचार मानव समाज के लिए सबसे प्रासंगिक कालजयी और चिर नव विचार है I

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